Saturday, 28 June 2008
कुछ प्रसिद्ध एतिहासिक जैन पुरुष
जय जिनेन्द्र ,इस विषय में हम कुछ प्रसिद्ध जैन महापुरुष के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे जिन्हें या तो हम सिर्फ नाम से जानते हैं या जानते ही नहीं हैं यह सब जानकारी मैंने जैन दर्शन गणित नामक पुस्तक से ली है अगर आपको किसी भी तरह की कोई शंका हो तो मुझे बताएं मैं उसे दूर करने की पूरी कोशिश करूँगा अथवा आप इस पुस्तक से भी जानकारी प्राप्त कर सकतें हैं
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3 comments:
भरत
पूर्व भव न. 8 में वल्सकावती देश का अतिगृध नामक राजा, फिर चौथे नरक का नारकी, छठे भव में व्याघ्र हुआ, पाँचवे में दिवाकर प्रभ नामक देव, चौथे भव में मतिसागर मंत्री हुआ | तीसरे भव में अधोग्रेवेयक में अहमिन्द्र हुआ | दुसरे भव में सुबाहु नामक राजपुत्र हुआ | पूर्वभव में सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुआ | वर्तमान भव में भगवान ऋषभदेव के पुत्र थे | भगवान की दीक्षा के समय राज्य और केवलज्ञान के समय चक्र तथा पुत्ररत्न की प्राप्ति की छह खंड को जीतकर बाहुबली से युद्ध में हारे | क्रोध वश चक्र चला दिया, परन्तु चक्र उनके पास जाकर ठहर गया |
फिर एक वर्ष पश्चात इन्होने योगी बाहुबली की पूजा की | एक समय श्रावकों की स्थापना कर उनकों गर्भान्वयन आदि क्रियाएं, दीक्षान्वय क्रियाएं, षोडश संस्कार व मंत्रों आदि का उपदेश दिया | आयु को क्षीण जानकर पुत्र अर्क कीर्ति को राज्य देकर दीक्षा धारण की तथा अंतर्मुहुर्त में ध्यानस्थ होकर मन: पर्याय न केवलज्ञान प्राप्त किया | फिर चिरकाल तक धर्मोपदेश दे मोक्ष को प्राप्त किया | ये भगवान के मुख्य श्रोता थे तथा प्रथम चक्रवर्ती थे |
कंस
पूर्व भव में वशिष्ट नामक तापस था | इस भव में राजा उग्रसेन का पुत्र हुआ | मंदोदरी के घर पला | जरासंध के शत्रु को जीतकर जरासंध की कन्या जीवंद्यषा को ब्याहा तथा पिता के क्रूर व्यवहार से क्रुद्ध होकर उसे जेल में डाल दिया | अपनी बहन देवकी वासुदेव के साथ गुरु दक्षिणा के रूप में परिनायी |
भावी मरण की आशंका से देवकी के छ पुत्रों को मार दिया | अंत में देवकी के सातवें पुर्त्र कृष्ण द्वारा मारा गया |
श्रुतावतार के अनुसार आप पांचवें ११ अंगधारी आचार्य थे |
कनकध्वज
दुर्योधन द्वारा घोषित आधे राज्य के लालच से इसने कृत्या नामक विद्या को सिद्ध करके उसके द्वारा पांडवो को मारने का प्रयत्न किया, परन्तु उसी विद्या से स्वयं मारा गया |
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